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भारतवर्ष के उत्तर में स्थित उत्तराखण्ड राज्य संस्कृति, इतिहास एवं भूगोल की दृष्टि से देश के अन्य राज्यों से भिन्न है। भारत के राजनैतिक मानचित्र पर 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आये उत्तराखण्ड के उत्तर में तिब्बत, पूर्व में नेपाल, देश की सीमायें हैं वहीं पश्चिम में हिमाचल प्रदेश व दक्षिण में उत्तरप्रदेश सीमावर्ती राज्य हैं। हिमालय की गोद में विस्तीर्ण फैले इस भूभाग का आठवीं ईसवी में लिखे गये स्कन्दपुराण के केदारखण्ड एवं मानसखण्ड में जो दोनों बाद में गढ़वाल एवं कुर्मांचल नाम से हो गये, उल्लेख किया गया है।
गिरिराज हिमालय के चाँदी के समान श्वेत पर्वत शिखर, हरी भरी घाटियाँ, कल-कल का स्वर करती हुई नदियां, दूध के समान उंची पहाडियों से गिरते हुये सफेद झरने, तथा किसी गंभीर शातं स्वभाव की विभूति की तरह शांत जलाशय इस प्रदेश के प्राकृतिक वैभव का परिचय देते हैं। यहां की यही प्राकृतिक सुन्दरता कई महान कवियों तथा लेखकों के लिये प्रेरणा का स्रोत रही है। उत्तराखण्ड देश के उन राज्यों में से एक है जिन्हें देवभूमि कहलाने का गौरव प्राप्त है। भारतवर्ष के उत्तर में स्थित चारों धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री तथा यमुनोत्री इसी प्रदेश में हैं। यह पावन भूमि देवी-देवताओं नाग- गंधर्वो की क्रीड़ा-स्थली, ऋषि -मुनियों की तपःस्थली, योगियो-साधुओं की साधना स्थली तथा विद्वानों की कर्मस्थली रही है। यहां कई ऐसे मन्दिर व धार्मिक स्थल हैं जिनका संबधं पुराणों या उत्तराखण्ड के इतिहास से रहा है, यही असंख्य देवालय, शक्तिपीठ, मन्दिर व धार्मिक स्थल इस क्षेत्र को देवभूमि के नाम से विभूषित करते हैं।
हिन्दू धर्म में माता के रूप में जानी जाने वाली गंगा तथा यमुना का यह उद्गम क्षेत्र है। उत्तराखण्ड में भारतीय आध्यात्मिक परंपरा से जुड़ी अनेक आध्यात्मिक निर्मितियां, मन्दिर तथा तीर्थस्थल हैं. जिनका पौराणिक व आधुनिक इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्व है। उत्तराखण्ड सदैव ही सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। पर्यटन के दृष्टिकोण से भी यह प्रदेश अपने प्राकृतिक दृश्यावलियों के लिये प्रसिद्ध है। वर्ष भर लाखों पर्यटक यहां उत्तराखण्ड भ्रमण के लिये आते हैं और यहां की मनोरम स्थलों की कभी न भूलने वाली स्मृतियां साथ ले जाते हैं। पर्यटन उत्तराखण्ड की अर्थवयस्था ही नहीं अपितु संस्कृति का भी मेरूदण्ड है। हालांकि वर्ष भर उत्तराखण्ड में देश ही नही अपितु पूरे विश्व से लोग भ्रमण हेतु आते हैं परंतु जानकारियों के आभाव में यहां के कई ऐसे स्थलों को देखने से वंचित रह जाते हैं जिनका अपना एक अलग ही पौराणिक तथा ऐतिहासिक महत्व है। हमारा मुख्य उद्देश्य उन सभी स्थलों की जानकारी पर्यटकों तक पहुंचाना है।
उत्तराखण्ड में स्थित चारों धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री तथा अन्य मुख्य पर्य़टक स्थलों के अतिरिक्त कई ऐसे तीर्थस्थल, मंदिर भी हैं जो अपनी पवित्रता, पौराणिकता के आधार पर अपना अलग ही महत्व रखते हैं। इस पोर्टल का मुख्य उद्देश्य उत्तराखण्ड में ग्रामीण व आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ साथ वह स्थान जो कि अभी तक पर्यटन के मानचित्र पर अपने लिए स्थान नही बना पाए उन स्थानों को आने वाले पर्यटकों के संज्ञान में लाकर पर्यटन के नये आयाम स्थापित करना है। सांस्कृतिक पर्वों की दृष्टि से उत्तराखण्ड बहुत धनी प्रदेश है। यहां समय समय पर कई मेलों और सांस्कृतिक पर्वों का आयोजन किया जाता है। आज की भागदौड़ की जीवनशैली, तकनीकि व बढ़ते हुये मनोरंजन के साधनों के बीच हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को खोते जा रहें हैं। अब चाहे वो मेले हों या उत्सव सब कुछ सीमित साधनों और सीमित समय के बीच सिमटता जा रहा है। हमारा मुख्य उद्देश्य पर्यटकों और आज की पीढ़ी को अपनी पहचान खोते इन मेलों व सांस्कृतिक पर्वों का ज्ञान देना है, ताकि अपने अस्तित्व को खोती हुई हमारी ये विरासत पुनर्जीवित हो सके।